Sunday, 10 July 2016
संकटो में मुस्कान न छीन जाए इसका नाम साधना है परस्थिति को मनस्थिति न बनन...
दुनिया का मालिक बनने के लिए साधना नही की जाती अपने दोषो से मुक्त होने के लिए साधना की जाती है।
बाहर से जैन होने में (बाहर से जिन मार्गी होने में) और अंदर से उस मार्ग पर स्थिर रहने में बड़ा अन्तर है।
अति विश्वास विनय से दूर हो सकता है की नही अभी मैं बहुत छोटा हूँ मैं सिख ही तो रहा हूँ।
संकटो में मुस्कान न छीन जाए इसका नाम साधना है परस्थिति को मनस्थिति न बनने देने का नाम साधना है।
हर पल इस बात का ध्यान रखने योग्य है की साँस बाहर निकलने के बाद अंदर आये इसका कोई ठिकाना नही किसी भी पल कुछ भी हो सकता है।
त्याग के बाद एक हल्कापन आता है और फिर साधना के बाद एक आनंद आता है।
अगर सुधरने वाला सुधरने को त्यार हो जाए तो फिर सुधार को कौन सकता है।
आगम धारा 10.07.2016
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